पतंजलि वातारी चूर्ण के फायदे घटक उपयोग
पतंजलि वातारी चूर्ण के फायदे वातारी चूर्ण के घटक, वातारी चूर्ण के उपयोग
यह एक आयुर्वेदि दवा है जिसमे कई उपयोगी दवाओं के मिश्रण से आमवात, गैस से सबंधित रोगों का इलाज किया जाता है। यह दवा जोड़ों के दर्द, गठिया, आदि रोगों में लाभदायी है।
पतंजली वातरि चूर्ण के घटक : Ingredients of Patanjali Vatari Churna Hindi
इस चूर्ण में सौंठ, विधारा, कुटकी, अश्वगंधा, सुरंजान (मीठी) और मेथी का उपयोग किया जाता है। इसके सभी घटक का मूल गुण वात को नियंत्रित करना है। जोड़ों के दर्द में यह दवा बहुत ही लाभदायक होती है। आमवात रोग के उपचार के लिए भी यह उत्तम दवा है। आइये जानते हैं इसके घटक के बारे में।
सोंठ
अदरक ( जिंजिबर ऑफ़िसिनेल / Zingiber officinale ) को पूर्णतया पकने के बाद इसे सुखाकर सोंठ बनायी जाती है। ताजा अदरक को सुखाकर सौंठ बनायी जाती है जिसका पाउडर करके उपयोग में लिया जाता है। सौंठ का स्वाद तीखा होता है और यह महकदार होती है। अदरक गुण सौंठ के रूप में अधिक बढ़ जाते हैं। अदरक जिंजीबरेसी कुल का पौधा है। अदरक का उपयोग सामान्य रूप से हमारे रसोई में मसाले के रूप में किया जाता है। चाय और सब्जी में इसका उपयोग सर्दियों ज्यादा किया जाता है। अदरक केयदि औषधीय गुणों की बात की जाय तो यह शरीर से गैस को कम करने में सहायता करता है, इसीलिए सौंठ का पानी पिने से गठिया आदि रोगों में लाभ मिलता है। सामान्य रूप से सौंठ का उपयोग करने से सर्दी खांसी में आराम मिलता है। अन्य ओषधियों के साथ इसका उपयोग करने से कई अन्य बिमारियों में भी लाभ मिलता है। नवीनतम शोध के अनुसार अदरक में एंटीऑक्सीडेंट्स के गुण पाए जाते हैं जो शरीर से विषाक्त प्रदार्थ को बाहर निकालने में हमारी मदद करते हैं और कुछ विशेष परिस्थितियों में कैंसर जैसे रोग से भी लड़ने में सहयोगी हो सकते हैं। पाचन तंत्र के विकार, जोड़ों के दर्द, पसलियों के दर्द, मांपेशियों में दर्द, सर्दी झुकाम आदि में सौंठ का उपयोग श्रेष्ठ माना जाता है। सौंठ के पानी के सेवन से वजन नियंत्रण होता है और साथ ही यूरिन इन्फेक्शन में भी राहत मिलती है। सौंठ से हाइपरटेंशन दूर होती है और हृदय सबंधी विकारों में भी लाभदायी होती है। करक्यूमिन और कैप्साइसिन जैसे एंटीऑक्सिडेंट के कारन सौंठ अधिक उपयोगी होता है।
विधारा
गिलोय की भांति ही विधारा (वानस्पतिक नाम Argyreia nervosa (Burm. ) Boj.) भी एक लता वर्ग की ओषधीय गुणों से भरपूर हर्ब है। विधारा को कई नामों से जाना जाता है यथा समन्दर-का-पाटा, समुद्रशोष, घावपत्ता, विधारा, वृद्धदारुक, आवेगी, छागात्री, वृष्यगन्धिका, वृद्धदारु, ऋक्षगन्धा, अजांत्री, दीर्घवल्लरी आदि। आयुर्वेद में विधारा के बहुत लाभ बताये गए हैं। ऐसा कहा जाता है की यदि कटे हुए मांस को इस पत्ते की सहायता से जोड़ दिया जाता है। घाव भरने में विधारा का उपयोग चमत्कारिक माना जाता है। विधारा का उपयोग जोड़ों का दर्द, गठिया, बवासीर, सूजन, डायबिटीज, खाँसी, पेट के कीड़े, सिफलिश, एनीमिया, मिरगी, मैनिया, दर्द और दस्त आदि रोगों के उपचार हेतु सदियों से किया जाता रहा है। गैंग्रीन आदि रोगों के लिए भी विधारा का उपयोग लाभदायी माना जाता है। समस्त स्नायु के रोगों के लिए भी विधारा का उपयोग लाभदायी होता है। विधारा के साथ अश्वगंधा का उपयोग करने से जोड़ों के दर्द में बहुत लाभ मिलता है। विधारा के उपयोग से शारीरिक और मानसिक कमजोरी दूर होती है। एंटी बेक्टेरियल और एंटी इंफ्लामेन्ट्री गुणों के कारन यह घाव को भरने में मदद करता है और सूजन को भी कम करता है। पुराने लोग घाव को ठीक करने के लिए विधारा के पत्तों को पीस कर घाव पर लगाते आये हैं जिससे घाव शीघ्र ठीक हो जाता है। स्वाद में यह तीखा और कड़वा होता है साथ ही तासीर में गर्म होता है। यह पचने में सरल होता है और पाचन को दुरुस्त करता है। इसके उपयोग से वात और कफ दोनों ही शांत होते हैं और साथ ही यह पाचन तंत्र को मजबूत करने वाली ओषधि भी मानी जाती है। विधारा का उपयोग अश्वगंधा चूर्ण के साथ करने से पुरुषों में वीर्य मजबूत होता है और आयुजनित प्रभाव कम होते हैं। मधुमेह और मूत्र विकारों में भी इसका उपयोग लाभदायी होता है।कुटकी
अनेकों रोगों की एक दवा है कुटकी जिसका वानस्पतिक नाम Picrorhiza root (पिक्रोराइजा रूट) हेल्लेबोर (Hellebore) होता है। आयुर्वेद में इसे बहुत उपयोगी माना गया है और प्राचीन काल से ही कुटकी का उपयोग विभिन्न रोगों के उपचार के लिए किया जाता रहा है। यह जड़ी बूटी पहाड़ों पर ख़ास तौर से ठन्डे इलाकों पर अधिकता से पायी जाती है और विशेष रूप से बहुत ऊंचाई के इलाकों में पायी जाती है। इसका स्वाद तीखा और कड़वा होता है और तासीर ठंडी। भूख नहीं लगना, लिवर में टोक्सिन का भर जाना, फैटी लिवर, किडनी की सफाई के लिए, शरीर की गर्मी को दूर करना, रक्त को साफ़ करना, शरीर को शुद्ध करने में, पिम्पल्स आदि में, शरीर को डेटोक्सिक करने में बहुत लाभदायक होता है। पेट को साफ़ करने में भी बहुत लाभदायक होती है। आकार में यह कुछ कुछ मुलेठी जैसे होती है। इसे अक्सर मुंह में रखने और चूसने से भहुत लाभदायी होती है। इसकी तासीर कुछ ठंडी होती है। जिन लोगों के शरीर में गर्मी की परेशानी होती है उनके लिए यह बहुत ही प्रभावी होती है। कुटकी के सेवन से पित्त और वात जनित रोगों में लाभ मिलता है। कुटकी से मूल रूप से गले और मुंह के रोग, सुखी खांसी हृदय रोग, किडनी को साफ़ करने आदि में उपयोग में लिया जाता है। इसके सेवन से पाचन सुधरता है, भूख में वृद्धि होती है, लिवर की सफाई होती है, त्वचा के विकार दूर होते हैं।मेथी : मेथी से हम सभी परिचित हैं और इसका उपयोग हम हमारी रसोई में करते हैं। आप गौर करें की हमारी रसोई में ज्यादातर जिन्हे हम मसाले कहते हैं उनका स्थान बरसों से इसीलिए होता आया है क्यों की ये औषधीय गुणों से भरपूर होती हैं। मेथी के पत्तों की सब्जी भी बनायी जाती है जो की बहुत लाभदायी होती है और इसी भांति गाँवों में प्रसूता औरतों को मेथी के लड्डू भी खिलाये जाते हैं। मेथी का स्वाद तीखा और कैसला होता है और इसकी तासीर गर्म होती है। यह शरीर में वात जनित रोगों को दूर करती है और कफ में भी कार्य करती है। प्रधानरूप से मेथी में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, आइरन, मॅंगनीस, कॉपर, विटामिन बी6, फाइबर पाए जाते हैं जो हमारे शरीर के लिए बहुत लाभदायी होते हैं। मेथी के गुणों में यह मुख्य रूप से शरीर में वात नियन्त्रिक करती है, हृदय रोगों में लाभदायी होती हैं, पाचन तंत्र को सुधारती है, गठिया रोग में प्रभावी, भूख बढ़ाती है, पेट के कृमि समाप्त करती है और तंत्रिका तंत्र विकारों को भी दूर करने में सहयोगी होती है। इसके सेवन से शरीर में वात के कारन उत्पन्न दर्द भी शांत होता है। मेथी एंटी इंफ्लामेन्ट्री होती है इसलिए यह सूजन को भी कम करती है। मेथी के पानी के सेवन से कब्ज और गैस में भी राहत मिलती है। उच्च रक्तचाप, डायबिटीज आदि रोगों के लिए भी मेथी का पानी प्रभावी होता है। मेथी के सेवन से मानसिक सक्रियता भी बनी रहती है।
अश्वगंधा
अश्वगंधा एक ऐसी जड़ी बूटी है जिसका नाम अक्सर हमें सुनाई देता हैं, क्योंकि यह अत्यंत गुणों से भरपूर एक हर्ब होती है जिसका उपयोग अनेकों आयुर्वेदिक दवाओं में किया जाता है, साथ ही ऐसा माना जाता है की यह आयुर्वेद में सबसे प्राचीन समय से उपयोग में ली जा रही जड़ी बूटी है। यह एक पौधा होता है जो द्विबीज पत्रिय होता है। अश्वगंधा वात और कफ का शमन करती है। अश्वगंधा प्रधान रूप से बल्यकारक, रसायन, बाजीकरण ,नाड़ी-बलकारक, दीपन, पुष्टिकारक और धातुवर्धक होता है। प्राचीन समय से ही मस्तिष्क को बलशाली बनाने में इस दवा का उपयोग किया जाता रहा है और यह आयुर्वेद में मानसिक विकार, चिंता, तनाव और उन्माद के लिए उपयोग में आती है। वर्तमान समय में विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों के द्वारा भी अश्वगंधा के कैप्सूल और अन्य उत्पाद तैयार किये जा रहे हैं जो इसके प्रभावों के बारे में और इसके महत्त्व को दर्शाता है। इस हर्ब को राजस्थान में शेखावाटी क्षेत्र में पदलसिंह, पदलसि कहा जाता है और ऐसी मान्यता है की इसमें घोड़े के मूत्र के तुल्य गंध आने के कारन इसे अश्वगंधा कहा जाता है। इस पौधे के जड़े महत्वपूर्ण होती हैं जिन्हे शुक्राणु वर्धन के लिए उपयोग में लिया जाता है। अश्वगंधा के निम्न औषधीय गुण होते हैं। इसे कई अन्य नामो से भी पहचाना जाता है यथा असगन्ध, अश्वगन्धा, पुनीर, नागोरी असगन्ध आदि। इसके पत्ते, जड़, फल और फूल का उपयोग विभिन्न ओषधियों के निर्माण में किया जाता है। अश्वगंधा का मनमानी और बगैर डॉक्टर की सलाह से सेवन स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव भी डाल सकता है।- इसे पुरुषों के लिए ऊर्जा और शुक्राणु वृद्धि के लिए श्रेष्ठ माना गया है।
- यह तंत्रिका तंत्र सबंधी विकारों में भी उत्तम परिणाम देती है।
- महिलाओं के रोग, यथा स्वेत प्रदर में भी यह एक उत्तम दवा है।
- जोड़ों के दर्द और गठिया जैसे रोग जो वात इकठ्ठा होने से होती हैं, अस्वगंधा के उत्तम परिणाम प्राप्त होते हैं।
- त्वचा सबंधी विकारों में भी अस्वगंधा का उपयोग किया जाता है।
- बालों से सबंधित विकारों में भी अश्वगंधा का उपयोग किया जाता है।
- खांसी, गले के रोग, टीवी आदि रोगों में भी इसकी ओषधि का निर्माण किया जाता है।
- कब्ज, इन्द्रियों की कमजोरी के लिए भी इस हर्ब से बनी दवा का उपयोग किया जाता है।
- शारीरिक कमजोरी और रक्त विकार को भी अश्वगंधा के सेवन से ठीक किया जाता है।
सुरंजान मीठी
(कोलिकम ल्यूटियम बेकर) इसका उपयोग भी जोड़ों के दर्द को कम करने के लिए किया जाता है। प्रधान रूप से यह ओषधि यूनानी चिकित्सा पद्धत्ति में उपयोग में ली जाती है। यह हर्ब ठन्डे इलाकों में मुख्य रूप से पायी जाती है। इसकी दो प्रजातियां होती है एक कड़वी और दूसरी मीठी। दोनों के ही मूल गुण दर्द निवारक, एंटी-गाउट, एंटी-रयूमैटिक, प्युगेटिव और इमेटिक होते हैं। यह एंटी इंफ्लामेन्ट्री, एंटी गाउट, अंतिफोलॉजिस्टिक होती है। यह शरीर से अनावश्यक गैस को दूर करती है और पाचन को भी सुधरने में मदद करती है। इसमें घाव भरने के गुण होते हैं और यह पाईल्स के दर्द को भी दूर करती है। आमवात रोग में भी इसका लाभ होता है। उम्र के साथ हड्डियों में जो डिजनरेशन होता है उसके कारण जोड़ों में वात जमा होने लग जाता है जिससे उनमे दर्द शुरू हो जाता है यह उस दर्द को कम करता है क्यों की यह एंटीफ्लॉमेंट्री भी होता है। जॉइंट्स के स्टिफनेस को भी यह दूर करने में सहायक होता है।पतंजली वातरि चूर्ण केफायदे Patanjali Vatari Curna Benefits Hindi Patanjali Vatari Churn Ke Fayade
वातरी चूर्ण के कई लाभ होते हैं जो की प्रधान रूप से गैस (वात जनित ) व्याधियों के लिए उपयोग में लिया जाता है। वैसे तो इस चूर्ण को कई प्रकार के रोगों के उपचार के लिए कार्य में लिया जाता है, लेकिन निम्न परिस्थितियों में इसका उपयोग वैद्य / डॉक्टर की सलाह के उपरान्त किया जा सकता है।
- शरीर के जोड़ों में जो दर्द होता है, वैसे ये कई कारणों से हो सकता है, लेकिन यदि यह वात के इकठ्ठा होने से हो रहा हो तो इस चूर्ण का लाभ उत्तम प्राप्त होता है और जोड़ों के दर्द में राहत मिलती है।
- मांशपेशियों के दर्द में भी अश्वगंधा का उपयोग अच्छा परिणाम देता है और मांशपेशियां मजबूत बनती हैं और उनका दर्द दूर होता है।
- जोड़ों का दर्द और गठिया रोग में यह चूर्ण उत्तम परिणाम देता है।
- कई महिलाओं के रजोनिवृति के उपरांत ऑस्टियोपोरोसिस हो जाता है,यह चूर्ण इस में भी फायदेमंद रहता है।
- साइटिका रोग में इसका उपयोग तंत्रिका तंत्र से सबंधित विकारो को दूर करने के लिए किया जाता है।
पतंजली वातरि चूर्ण किन रोगों के लिए लाभदायक है
यह चूर्ण जोड़ों के दर्द, मांसपेशियों की कमजोरी, तंत्रिका तंत्र के विकार, सायटिका, वात जनित रोगों में लाभदायी होता है।पतंजली वातरि चूर्ण को कैसे लें
इस चूर्ण को लेने से पहले किसी वैद्य की सलाह लेवे और आपके शरीर की तासीर, उम्र और आपके शरीर की ताकत के अनुसार आपको वैद्य की बताई गयी निश्चित मात्रा में ही इसका सेवन करना चाहिए।पतंजली वातरि चूर्ण कहाँ से खरीदें
चिकित्सक / वैद्य की सलाह के उपरांत आप इसे पतंजलि स्टोर्स से खरीद सकते हैं। यदि आप इसके विषय में अधिक जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं या फिर ऑनलाइन इस चूर्ण को क्रय करना चाहते हैं तो पतंजलि की अधिकृत / ऑफिसियल वेब साइट पर विजिट करें, जिसका लिंक निचे दिया गया है।पतंजलि आयुर्वेदा का क्या कहना है वातरि चूर्ण के बारे में :
This churna consists of dry Ginger, Picrorrhiza Kurroa ( kutki), Fenugreek, `Ashwagandha` and `Suranjana` (sweet), which is the best treatment of all gastric problems. `Aamvat` when the gases collect in the stomach, causing pains to the joints. In such diseases, this powder is very beneficial. Different herbs and other materials of ayurveda importance are refined to form powder. Base, salt and acid mixed powder is warm in nature, digestible, tasteful and ignites hunger. Sugar or candy mixed powders are rich in purgation quality, cool and bile suppressive while powders formed of bitter items treat fever and phlegem. The medicines prepared of herbs, which are finely grinned after being dried are called `churna` in Ayurveda. Dosage: Half or one spoon, near 2-5 grams, empty stomach or after meals, according to the disease, take in morning and evening with tepid water.