ब्रेकअप के बाद कैसे नार्मल हो यहाँ पढ़िए
ब्रेकअप के बाद अवसाद से निपटना
जीवन में कभी-कभी ऐसा वक्त आता है जब ब्रेकअप, नौकरी जाना या किसी अपने का चले जाना जैसे झटके हमें तोड़ देते हैं। इन घटनाओं से दिमाग में गहरी उदासी और निराशा का भाव छा जाता है, जिसे सिचुएशनल डिप्रेशन या रिएक्टिव डिप्रेशन कहते हैं। यह कोई स्थायी बीमारी नहीं, बल्कि किसी खास तनावपूर्ण स्थिति के जवाब में होने वाली भावनात्मक प्रतिक्रिया है। मेयो क्लिनिक के अनुसार, यह 6 महीने तक रह सकता है और सही इलाज से ठीक हो जाता है। भारत में WHO के आंकड़ों से पता चलता है कि युवाओं में ब्रेकअप से जुड़े डिप्रेशन के मामले 30% तक बढ़े हैं।
ब्रेकअप स्वास्थ्य पर गहरा असर डालते हैं। रिश्ते टूटने से भावनात्मक तूफान आता है, जो दिमाग और शरीर दोनों को प्रभावित करता है। कभी आसानी से पार हो जाते हैं, तो कभी क्रोध, उदासी, चिंता और दिल टूटने की पीड़ा लंबे समय तक रहती है। आइए समझें यह क्या है, इसके लक्षण और इससे उबरने के आसान तरीके।
सिचुएशनल डिप्रेशन क्यों होता है?
जब जीवन में कोई बड़ा सदमा लगता है— ब्रेकअप, तलाक, दुर्घटना या नौकरी छूटना—तो दिमाग में तनाव हार्मोन कोर्टिसोल का स्तर बढ़ जाता है। इससे सेरोटोनिन और डोपामाइन जैसे खुशी के केमिकल्स कम हो जाते हैं। न्यूरोसाइंटिस्ट्स कहते हैं कि ब्रेकअप दिमाग को 'ड्रग्स की लत' जैसा एहसास देता है, क्योंकि प्यार के दौरान ऑक्सीटोसिन रिलीज होता था। अगर इसे कंट्रोल न किया जाए, तो व्यक्ति सामान्य जीवन भूल जाता है और जीने की चाहत कम हो जाती है।
जब जीवन में कोई बड़ा सदमा लगता है— ब्रेकअप, तलाक, दुर्घटना या नौकरी छूटना—तो दिमाग में तनाव हार्मोन कोर्टिसोल का स्तर बढ़ जाता है। इससे सेरोटोनिन और डोपामाइन जैसे खुशी के केमिकल्स कम हो जाते हैं। न्यूरोसाइंटिस्ट्स कहते हैं कि ब्रेकअप दिमाग को 'ड्रग्स की लत' जैसा एहसास देता है, क्योंकि प्यार के दौरान ऑक्सीटोसिन रिलीज होता था। अगर इसे कंट्रोल न किया जाए, तो व्यक्ति सामान्य जीवन भूल जाता है और जीने की चाहत कम हो जाती है।
इसके मुख्य लक्षण क्या हैं?
सिचुएशनल डिप्रेशन के लक्षण तीन तरह के होते हैं—मानसिक, शारीरिक और व्यवहारिक। अगर ये 2 हफ्ते से ज्यादा रहें, तो डॉक्टर से मिलें।
हाल ही की एक स्टडी (लैंसेट जर्नल) में पाया गया कि योग और मेडिटेशन से 70% मरीजों में लक्षण 4 हफ्तों में कम हो गए। याद रखें, मदद मांगना ताकत की निशानी है। मुश्किल वक्त गुजर जाता है!
सिचुएशनल डिप्रेशन के लक्षण तीन तरह के होते हैं—मानसिक, शारीरिक और व्यवहारिक। अगर ये 2 हफ्ते से ज्यादा रहें, तो डॉक्टर से मिलें।
- गहरी उदासी, हताशा या बार-बार रोना।
- चिड़चिड़ापन, गुस्सा या बेवजह डर लगना।
- नींद न आना या ज्यादा सोना, भूख लगना बंद हो जाना।
- सिरदर्द, पेट दर्द, जोड़ों में दर्द या सीने में जकड़न।
- अकेले रहना, शराब-सिगरेट का उपयोग बढ़ाना या काम पर ध्यान न लगना।
- जुए या झूठ बोलने जैसी नई बुरी आदतें।
- एकाग्रता भंग: ध्यान न लगना।
- थकान और बेकार समझना, ऊर्जा की कमी, खुद को बेकार समझना।
- पसंदीदा कामों में रुचि न लगना, उदास या खालीपन।
- मृत्यु या आत्महत्या के ख्याल—यह इमरजेंसी है।
ब्रेकअप से उबरने के आसान उपाय
ब्रेकअप के बाद कैसे नार्मल मुश्किल लगती है, लेकिन असंभव नहीं है. सबसे पहले साइकोलॉजिस्ट या साइकियाट्रिस्ट से काउंसलिंग लें। CBT (कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी) बहुत कारगर है, जो नकारात्मक सोच बदलती है। जरूरत पड़े तो हल्की दवाएं दी जाती हैं। परिवार का साथ सबसे बड़ा सहारा है—उन्हें अपनी बात शेयर करें।- हेल्दी खाना: बादाम, केला, दही जैसे सेरोटोनिन बढ़ाने वाले फूड्स लें। आयुर्वेद में अश्वगंधा या ब्राह्मी चाय फायदेमंद।
- नींद और व्यायाम: रात 10 बजे सोएं, सुबह 6 बजे उठें। रोज 30 मिनट योग (अनुलोम-विलोम) या वॉक करें।
- शौक अपनाएं: गार्डनिंग, डांस या संगीत सुनें। दोस्तों से बात करें—मन हल्का हो जाएगा।
- ध्यान और मेडिटेशन: ऐप्स जैसे Calm या Insight Timer से 10 मिनट की प्रैक्टिस शुरू करें।
हाल ही की एक स्टडी (लैंसेट जर्नल) में पाया गया कि योग और मेडिटेशन से 70% मरीजों में लक्षण 4 हफ्तों में कम हो गए। याद रखें, मदद मांगना ताकत की निशानी है। मुश्किल वक्त गुजर जाता है!
महत्वपूर्ण सुझाव:
अगर आप या आपका कोई जानने वाला अवसाद से जूझ रहा है, तो तुरंत KIRAN Helpline 1800-599-0019 पर संपर्क करें. यह एक गंभीर मानसिक बीमारी है, इसलिए किसी प्रशिक्षित पेशेवर (मनोचिकित्सक या मनोवैज्ञानिक) से मदद लेना सबसे ज़रूरी है.
सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने चिंता, तनाव, अवसाद, आत्महत्या के विचारों जैसी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे लोगों के लिए 24/7 टोल-फ्री हेल्पलाइन ‘किरण’ शुरू की है। यह महामारी से उपजी मनोवैज्ञानिक परेशानियों, तनाव प्रबंधन और सकारात्मक व्यवहार को बढ़ावा देने के लिए 13 भाषाओं में उपलब्ध है, जिसमें 660 मनोवैज्ञानिक और 668 मनोचिकित्सक स्वयंसेवक हैं।
डिप्रेशन से जूझ रहे व्यक्ति की मदद करने के लिए सबसे जरूरी है धैर्य रखना और उनकी भावनाओं का सम्मान करना। अगर वे आपको अपना दर्द दिखाएं, तो उसे गोपनीय रखें, न सुनें तो चुपचाप साथ दें—कभी-कभी बस मौजूदगी ही बहुत राहत देती है। उन्हें अकेले न छोड़ें, शौक या कामों में व्यस्त रखने में मदद करें, लेकिन जोर-जबरदस्ती या चिल्लाना न करें, इससे वे और अकेले हो जाते हैं। उन्हें समझाएं कि खुद पर विश्वास करें, डॉक्टर से मदद लेना शर्म की बात नहीं, बल्कि ताकत है, और दयालुता व प्रेम से उनके मन की दीवारें धीरे-धीरे टूटेंगी।
