वृद्धिवाधिका वटी के फायदे उपयोग और घटक

वृद्धिवाधिका वटी के फायदे उपयोग और घटक

 
Vridhiwadhika Vati Uses Benefits and Side Effects

वृद्धिवाधिका वटी आयुर्वेदिक ओषधि है जो टेबलेट फॉर्म में है जो औषधीय जड़ी-बूटियों और धातुओं के योग से बनाई जाती है। इस लेख में हम इसके उपयोग और फायदों के बारे में जानेंगे। आपसे अनुरोध है की लेख को पूरा पढ़ें और इसके उपयोग से पूर्व चिकित्सक की सलाह प्राप्त करें। भले ही यह आयुर्वेदिक ओषधि है लेकिन आपको स्वंय इसका सेवन नहीं करना चाहिए। 
 
इस ओषधि के निर्माण में कज्जली, त्रिकटु, त्रिफला लौहभस्म, ताम्रभस्म, कांस्य भस्म आदि प्रमुख घटक का उपयोग किया जाता है। आयुर्वेद में वृद्धिवाधिका वटी का उपयोग अनेकों रोगों के उपचार के लिए किया जाता है जिनमे प्रमुख रूप से के हर्निया जैसे कि इंगुइनल हर्निया (Inguinal hernia), आंतों का हर्निया (intestinal hernia), हाइड्रोसील आदि प्रमुख हैं। इसके अतिरिक्त इस वटी का उपयोग अण्ड वृद्धि, आंत्रवृद्धि, अण्डकोष में वायु भरने पर होने वाली पीड़ा, अण्डकोष में रस, रक्त भरना आदि सभी दोषों के निवारण के लिए भी किया जाता है। 

वृद्धिवाधिका वटी फायदे, उपयोग

वृद्धिवाधिका वटी का उपयोग अनेकों विकारों के उपचार के लिए किया जाता है और मुख्य रूप से शरीर में होने वाली गांठ, सूजन और वृद्धि रोगों में इसका उपयोग लाभकारी होता है। यह विशेष रूप से अंडकोष की सूजन, जल वृद्धि (हाइड्रोसील), हर्निया (अंत्रवृद्धि) तथा ग्रंथि रोगों में सहायक मानी जाती है। इसके अलावा वात-कफ दोष के असंतुलन से उत्पन्न सूजन, भारीपन और दर्द को कम करने में भी इसका प्रयोग किया जाता है। यह औषधि पुरानी सूजन को शांत करने और वेदना में राहत देने में उपयोगी मानी जाती है। इस ओषधि के निम्न लाभ होते हैं -
  • हर्निया और हाइड्रोसील विकार में उपयोगी। 
  • थायराइड, ट्यूमर और हाथी पांव विकार के इलाज में उपयोगी।  
  • मूत्र पथ के संक्रमण को दूर करने के लिए उपयोगी।  
  • अण्डकोशों में वायु भरना, अण्डकोशों का दर्द, अण्डकोशों में रक्त या जल भरना विकार में उपयोगी।  
  • वृषण विकार में वृद्धिवाधिका वटी उपयोगी होती है। 
  • वृद्धिवाधिका वटी अन्डकोशों में नये और पुराने सभी प्रकार की वृद्धि के उपचार में उपयोगी होती है। 
  • समस्त अंडकोष विकार यथा अण्ड वृद्धि, अन्त्र वृद्धि, अण्डकोष में वायु भरने पर होने वाली पीड़ा, अण्डकोष में रस, रक्त भरना आदि के उपचार हेतु लाभकारी। 
  • पेट और श्रोणि की मांसपेशियों को मजबूत बनाने हेतु। 
  • पाचन क्रिया को दुरुस्त कर पेट फूलना विकार को दूर करने हेतु। अपच, गैस और पेट दर्द जैसी समस्याओं में लाभकारी। 
  • अस्थमा, क्षय रोग उपचार में लाभकारी . 
  • यह ओषधि कफ की अधिकता को कम करने में उपयोगी है।  
  • रक्त परिसंचरण को बढ़ाने और विषाक्त पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने में उपयोगी। 
  • सूजन और दर्द को कम करने के लिए लाभकारी। 
  • वात-पित्त-कफ तीनों दोषों को संतुलित करने के लिए उपयोगी। यह वात और कफ दोष को कम करता है।
  • वृद्धिवाधिका वटी के उपयोग से शरीर को पोषण मिलता है।
  • शरीर में पोषक तत्वों के अवशोषण को बढ़ाने में सहायक। 
  • मधुमेह और हृदय रोग जैसे दीर्घकालिक रोगों के जोखिम को कम करने में उपयोगी।  
 

वृद्धिवाधिका वटी के घटक/ Composition of  Vridhiwadhika Vati

  • औषधि के घटक द्रव्य सूची
  • शुद्ध पारद — Purified Mercury
  • शुद्ध गन्धक — Purified Sulphur
  • लौह भस्म — Iron Calx
  • वंग भस्म — Tin Calx
  • ताम्र भस्म — Copper Calx
  • कास्य भस्म — Bell Metal Calx
  • हरताल भस्म — Orpiment Calx
  • नीले थोथे की भस्म — Blue Vitriol Calx
  • शंख भस्म — Conch Shell Calx
  • कपर्दिका भस्म — Cowrie Shell Calx
  • शुण्ठी — Dry Ginger
  • कृष्ण मरिच — Black Pepper
  • पीपली — Long Pepper
  • हरीतकी — Chebulic Myrobalan
  • विभीतकी — Belleric Myrobalan
  • आमलक — Indian Gooseberry
  • चव्य — Java Long Pepper
  • कचूर — Zedoary
  • वायविडंग — False Black Pepper
  • पीपलामूल — Root of Long Pepper
  • पाठा — Velvetleaf Tree / Patha
  • हाऊबेर (हौबेर) — Indian Barberry
  • वच — Sweet Flag
  • एला — Cardamom
  • देवदारू — Deodar Cedar
  • समुद्र नमक — Sea Salt
  • सैंधव — Rock Salt
  • साँभर लवण — Lake Salt
  • विडंलवण — Black Salt (Processed)
  • कृष्ण लवण — Black Salt (Kala Namak) 
घटक द्रव्य (रस-वीर्य-विपाक)
 
शुद्ध पारद
रस — षड्रसयुक्त
वीर्य — उष्ण
विपाक — मधुर

शुद्ध गन्धक
रस — कटु, तिक्त
वीर्य — उष्ण
विपाक — कटु

लौह भस्म
रस — कषाय
वीर्य — शीत
विपाक — मधुर

वंग भस्म
रस — कषाय
वीर्य — शीत
विपाक — कटु

ताम्र भस्म
रस — तिक्त, कषाय
वीर्य — उष्ण
विपाक — कटु

कास्य भस्म
रस — कषाय
वीर्य — शीत
विपाक — कटु

हरताल भस्म
रस — कटु, तिक्त
वीर्य — उष्ण
विपाक — कटु

नीलतूत्थ भस्म (नीले थोथे की भस्म)
रस — तिक्त, कषाय
वीर्य — उष्ण
विपाक — कटु

शंख भस्म
रस — मधुर
वीर्य — शीत
विपाक — मधुर

कपर्दिका भस्म
रस — मधुर
वीर्य — शीत
विपाक — मधुर

शुण्ठी
रस — कटु
वीर्य — उष्ण
विपाक — मधुर

मरिच (कृष्ण मरिच)
रस — कटु
वीर्य — उष्ण
विपाक — कटु

पिप्पली
रस — कटु
वीर्य — अनुष्ण-शीत
विपाक — मधुर

हरीतकी
रस — पंचरस (लवण वर्जित)
वीर्य — उष्ण
विपाक — मधुर

विभीतकी
रस — कषाय
वीर्य — उष्ण
विपाक — मधुर

आमलकी
रस — अम्ल प्रधान पंचरस
वीर्य — शीत
विपाक — मधुर

चव्य
रस — कटु
वीर्य — उष्ण
विपाक — कटु

कचूर
रस — कटु, तिक्त
वीर्य — उष्ण
विपाक — कटु

विडंग (वायविडंग)
रस — कटु, कषाय
वीर्य — उष्ण
विपाक — कटु

पिप्पलीमूल
रस — कटु
वीर्य — उष्ण
विपाक — मधुर

पाठा
रस — तिक्त, कषाय
वीर्य — उष्ण
विपाक — कटु

दारुहरिद्रा (हाऊबेर)
रस — तिक्त, कषाय
वीर्य — उष्ण
विपाक — कटु

वचा
रस — कटु, तिक्त
वीर्य — उष्ण
विपाक — कटु

एला
रस — मधुर, कटु
वीर्य — शीत
विपाक — मधुर

देवदारु
रस — तिक्त, कटु
वीर्य — उष्ण
विपाक — कटु

सामुद्र लवण
रस — लवण
वीर्य — शीत
विपाक — मधुर

सैंधव लवण
रस — लवण
वीर्य — शीत
विपाक — मधुर

सांभर लवण
रस — लवण
वीर्य — शीत
विपाक — मधुर

विड लवण
रस — लवण
वीर्य — उष्ण
विपाक — मधुर

कृष्ण लवण
रस — लवण
वीर्य — उष्ण
विपाक — मधुर

वृद्धिवाधिका वटी का आयुर्वेद ग्रन्थ में वर्णन


शुद्धसूं तथा गन्धं मृतान्येतानि योजयेत्।
लौहं वङ्गं तथा ताम्रं कांस्यञ्चाथ विशोधितम्।।
तालकं तुत्थकञ्चापि तथा शङ्खवराटकम्।
त्रिकटु त्रिफला चव्यं विडङ्गं वृद्धदारकम्।।
कर्चूरं मागधीमूं पाठां सहवुषां वचाम्।
एलाबीजं देवकाष्ठं तथा लवणप ञ्चकम्।।
एतानि समभागानि चूर्णयेदथ कारयेत्।
कषायेण हरीतक्या वटिकां टङकसम्मितम्।।
एकां तां वटिकां यस्तु निर्गिलेद् वारिणा सह।
अत्रवृद्धिरसाध्याsपि तस्य नश्यति सत्वरम्।।
– भैषज्य रत्नावली 43/74-78, भा.प्र.43/29-33 

घटक का नाम — मुख्य लाभ

  • कज्जली — शरीर की रोगों से लड़ने की शक्ति को बढ़ाने में सहायक होती है।
  • त्रिकटु — पाचन को मजबूत करता है और शरीर के दर्द को कम करने में मदद करता है।
  • त्रिफला — शरीर की अंदरूनी सफाई करता है और विषैले तत्वों को बाहर निकालने में सहायक होता है।
  • पंचलवण — पाचन अग्नि को तेज करता है तथा गैस, अफारा और पेट की ऐंठन में राहत देता है।
  • विडंगा — वात से जुड़ी समस्याओं में लाभकारी होता है और हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करने में सहायक है।
  • कचूर — शरीर की पीड़ा को कम करता है और वात दोष को संतुलित रखने में मदद करता है।
  • लौह भस्म — खून की कमी को दूर करने में सहायक होती है और शरीर को ताकत प्रदान करती है।
  • ताम्र भस्म — विभिन्न प्रकार के दर्द और वेदना में राहत देने में उपयोगी मानी जाती है।
  • कांस्य भस्म — लंबे समय से चले आ रहे ज्वर में सहायक होती है और पाचन संबंधी परेशानियों को कम करती है।
  • शंख भस्म — मोटापे से जुड़ी समस्याओं में सहायक होती है और वात विकारों को शांत करती है।
  • कपर्दक भस्म — कफ और वात दोष को संतुलित करती है तथा शरीर के दर्द में राहत देती है।

वृद्धिवाधिका वटी के संभावित दुष्प्रभाव

कुछ लोगों को इस ओषधि को खाली पेट लेने पर पेट में जलन, उल्टी आदि हो सकती है, इसलिए वृद्धिवाधिका वटी का सेवन भोजन से पहले या खाली पेट नहीं करना चाहिये। एलर्जी से चकत्ते, खुजली या सूजन भी आ सकती है। नेत्रपटल कमजोर होना, ब्लड प्रेशर बढ़ना या पेट की परेशानी भी संभव है। अतः हमेशा आयुर्वेदिक वैद्य की सलाह पर ही दवा शुरू करें। हर व्यक्ति का शरीर अलग होता है इसलिए स्वंय से ओषधि का उपयोग ना करें . ओषधि की खुराक उम्र, ताकत, पाचन और बीमारी के हिसाब से तय होती है। कोई भी बुरा लक्षण दिखे तो तुरंत डॉक्टर से बात करें। कॉफी, चाय, शराब, मसाले, अचार और तला-भुना खाना बंद रखें। ज्यादा फल खाएं, इससे दवा बेहतर असर करेगी।
 
वृद्धिवधिका वटी के दुष्प्रभाव
इस ओषधि का उपयोग अधिक मात्रा में करने / चिकित्सक की सलाह के बगैर करने पर निम्न दुष्परिणाम हो सकते हैं -
  • जी मिचलाना/Nausea
  • उल्टी करना/Vomiting
  • बेचैनी/Restlessness
  • चक्कर आना (वर्टिगो) /Reeling sensation (Vertigo)
  • गुदा विदर/Anal fissures 

ओषधि सेवन मात्रा/खुराक

इसकी खुराक/डोजेज के लिए आप चिकित्सक की सलाह लें, आप स्वंय अपनी मर्जी से इसका उपयोग ना करें, चूँकि इसमें धातु भस्म का उपयोग होता है। 
 

प्रमुख निर्माता Leading manufacturer

आप निम्न लिंक्स /वेबसाइटस पर विजिट करके इनके उत्पाद के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं -
Reference/सन्दर्भ : 
  • Bhav Prakash
  • Ref. Bhaishajya Ratnavali, Chapter 43, VRIDHI ROGA CHIKITSA, Vridhivadhika Vati, Verse 76 to 80 
    त्रिफला कषायं घृतं च तिलं तैलं च तिलं पिष्टं।
    शिलाजतु लौहं च ताम्रं नागं वंगं त्रिभिरेव च॥

    श्लोक ७७
    अभ्रकं भस्मकृतं च शुद्धं मैनसिलं तथा।
    शौक्लं कांजी च त्रिकटुं चित्रकं सुन्दिकां तथा॥

    श्लोक ७८
    दाडिमं मरिचं पिप्पली चव्यं च हिंगु शटावरी।
    मधुयष्टं च मधु च घृतं च लेहं विधाय च॥

    श्लोक ७९
    वटिका कारयेत् तस्याः सेवनं चालयेद् गुरु।
    वृद्धिवधिका नाम तु वटी या वृद्धिं निहन्ति सा॥

    श्लोक ८०
    पाचनार्थं तु सेव्या सा भोजनेऽन्ते जितेन्द्रियैः।
    स्नानं चाल्पं प्रकर्तव्यं स्नानोत्सर्गं न कारयेत्॥ 
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